Sunday, August 14, 2011

MY CV


CURRICULUM VITAE


Mukesh Kumar
K- II 10/1 Harijan Colony
Sangam Vihar New Delhi-110062.
Mobile No.-+919990591981, +919990447884
Email- msh47742@gmail.com

Career Objective

·         To be part of an organization which offers me an opportunity to look beyond my skills and face organizational challenges.

Education Qualification

·         12th passed  from CBSE in 2007
·         10th passed from CBSE in 2005  
·         Bachelor of Commerce(B.Com) from ,University of Delhi in 2010

 Technical Qualification

·        3 months Computer Basic course from Next generation Technology,Devli road,Khanpur,New Delhi
·        1 year certification course of Hardware (A+) & Networking (N+) from Brainware Computer Academy,  New Delhi

Technical Skills

·        MS-Office, Internet browsing
·        Hardware Maintenance , Software maintenance , Software Installation, Troubleshooting, Windows installation -Windows-2000, Windows-Xp, Windows-Vista, Windows-7 and PC-assembling


Work Experience:

·        Fresher.

Hobbies

·        Listening to music, Watching Discovery channel., Reading wikipedia articles                                                                                                                                                               

Personal Detail

·         Date of Birth                             2nd August 1989.

·         Father’s Name                         Parmeshwar Singh.

·         Marital Status                           Single.

·         Nationality                                Indian.

·         Category                                  SC

·         Religion                                  Hindu

·         Languages Known                    Hindi & English.

·         Permanent Add: -                     K-II,10/1,Harijan Colony, Sangam Vihar, New Delhi-110062


Date: …………….                                                                             Mukesh Kumar
                       
                                                                                                                     
                                                                                                                       

जन लोकपाल बिल

जन लोकपाल विधेयक

जन लोकपाल विधेयक भारत में प्रस्तावित भ्रष्टाचारनिरोधी विधेयक का मसौदा है। यदि इस तरह का विधेयक पारित हो जाता है तो भारत में जन लोकपाल चुनने का रास्ता साफ हो जायेगा जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जन लोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना सरकार से अनुमति लिये ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया है।

अनुक्रम

[संपादित करें] जन लोकपाल विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
  • किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।
  • भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
  • भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
  • अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
  • लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
  • लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
  • सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
  • लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।

[संपादित करें] जन लोकपाल बिल की प्रमुख शर्तें

न्यायाधीश संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जे एम लिंग्दोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था।
1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी की जांच की जा सकेगी
3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा: यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

[संपादित करें] सरकारी बिल और जनलोकपाल बिल में मुख्य अंतर

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

[संपादित करें] राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी

[संपादित करें] अधिकार क्षेत्र सीमित

अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.

[संपादित करें] चयनकर्ताओं में अंतर

सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा.

[संपादित करें] सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.

[संपादित करें] इन्हें भी देखें

[संपादित करें] बाहरी कड़ियाँ

Saturday, August 13, 2011

विश्व को भारत की वैज्ञानिक देन





वर्तमान में विज्ञान शब्द सुनते ही सबकी गर्दन पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। ऐसा लगता है कि विज्ञान का आधार ही पश्चिम कीदेन हो तथा भविष्य भी उनके वैज्ञानिकों के ऊपर टिका हो! परन्तु क्या हमने यह जानने का प्रयास किया है कि ऐसा क्यों है? याहमारी मनोदशा ऐसी क्यों है कि जब भी विज्ञान या अन्वेषण की बात आयी है तो हम बरबस ही पश्चिम का नाम ले लेते हैं।इसका सबसे बड़ा कारण जो हमें नजर आता है वह यह है कि, 'अपने देश व संस्कृति के प्रति हमारी अज्ञानता व उदासीनता काभाव। या यूं कहें कि सैकड़ो वर्षों की पराधीनता नें हमारे शरीर के साथ-साथ हमारे मन को भी प्रभावित किया जिसका परिणामयह हुआ कि हम शारीरिक रुप से तो स्वतंत्र हैं किन्तु अज्ञानतावश मानसिक रुप से आज भी परतंत्र हैं। थोड़ा विचार करने परयह पता चलता है कि हीनता की यह भावना यूँ ही नही उत्पन्न हुई ! बल्कि इसके पीछे एक समुचित प्रयास दृष्टिगत होता है, जोहमारे वर्तमान पाठयक्रम के रुप में उपस्थित है। प्राइमरी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी पाठयक्रमों में वर्णित विषय पूरीतरह से पश्चिम की देन लगते हैं, जो हमारी मानसिकता को बदलने का पूरा कार्य करते हैं। आजादी के बाद से आज तक इसीपाठ्क्रम को पढ़ते-पढ़ते इतनी पीढ़ीयाँ बीत चुकीं हैं कि अगर सामान्य तौर पर देश के वैभव की बात किसी भारतीय से की जायतो वह कहेगा कि कैसा वैभव? किसका वैभव? हम तो पश्चिम को आधार मानकर अपना विकास कर रहे हैं। हमारे पास क्या है? ऐसी बात नही कि यह मनोदशा केवल सामान्य भारतीय की हो बल्कि देश  का तथाकथित विद्वान व बुध्दिजीवी वर्ग भी यहीसोचता है। इसका मूल कारण है कि आजादी के बाद भी अंग्रजों के द्वारा तैयार पाठ्क्रम का अनवरत् जारी रहना, अपने देश  केगौरवमयी इतिहास को तिरस्कृत का पश्चिमी सोच को विकसित करना। और उससे भी बड़ा कारण रहा हमारी अपनी संस्कृति, वैभव, विज्ञान, अन्वेषण, व्यापार आदि के प्रति अज्ञानता।

इस मानसिकता के संदर्भ में दो बड़े रोचक उदाहरणों को प्रस्तुत किया जा सकता है :- जिसका वर्णन 'भारत में विज्ञानकी उज्जवल परम्परा' नामक पुस्तक में रा0 स्व0 से0 संघ के सह सरकार्यवाह मा. श्री सुरेश जी सोनी नें की है।

प्रथम तो यह कि भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम नें अपनी पुस्तक 'इण्डिया-2020 : ए विजन फॉर न्यू मिलेनियम' में बताते हैं कि मेरे घर की दीवार पर एक कलैण्डर टँगा है, इस बहुरंगी कलैण्डर में सैटेलाइट के द्वारा यूरोप, अफ्रीका आदिमहाद्वीपों के लिए गये चित्र छपे हैं। ये कलैण्डर जर्मनी में छपा था। जब भी कोई व्यक्ति मेरे घर में आता था तो दीवार पर लगेकलैण्डर को देखता था, तो कहता था कि वाह! बहुत सुन्दर कलैण्डर है तब मैं कहता था कि यह जर्मनी में छपा है। यह सुनते हीउसके मन में आनन्द के भाव जग जाते थे। वह बड़े ही उत्साह से कहता था कि सही बात है, जर्मनी की बात ही कुछ और हैउसकी टेक्नालॉजी बहुत आगे है। उसी समय जब मैं उसे यह कहता कि कलैण्डर छपा तो जरुर जर्मनी में है किन्तु जो चित्र छपे हैंउसे भारतीय सैटेलाइट नें खींचे हैं, तो दुर्भाग्य से कोई भी ऐसा आदमी नही मिला जिसके चेहरे पर वही पहले जैसे आनन्द के भावआये हों। आनन्द के स्थान पर आश्चर्य के भाव आते थे, वह बोलता था कि अच्छा! ऐसा कैसे हो सकता है? और जब मै उसका हाथपकड़कर कलैण्डर के पास ले जाता था और जिस कम्पनी ने उस कलैण्डर को छापा था, उसने नीचे अपना कृतज्ञता ज्ञापन छापाथा ''जो चित्र हमने छापा है वो भारतीय सैटेलाइट नें खींचे हैं, उनके सौजन्य से हमें प्राप्त हुए हैं।'' जब व्यक्ति उस पंक्ति को पढ़ता थातो बोलता था कि अच्छा! शायद, हो सकता है।

दूसरी घटना भी इन्ही से सम्बन्धित है जब वे सिर्फ वैज्ञानिक थे। दुनिया के कुछ वैज्ञानिक रात्रिभोज पर आये हुए थे, उसमेंभारत और दुनिया के कुछ वैज्ञानिक और भारतीय नौकरशाह थे। उस भोज में विज्ञान की बात चली तो राकेट के बारे में चर्चा चलपड़ी। डॉ. कलाम नें उस चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि कुछ समय पूर्व मैं इंलैण्ड गया था वहाँ एक बुलिच नामक स्थान है, वहाँरोटुण्डा नामक म्युजियम है। जिसमे पुराने समय के युध्दों में जिन हथियारों का प्रयोग किया गया था, उसकी प्रदर्शनी भी लगायीगयी थी। वहाँ पर आधुनिक युग में छोड़े गये राकेट का खोल था। और आधुनिक युग के इस राकेट का प्रथम प्रयोग श्रीरंगपट्टनममें टीपूसुल्तान पर जब अंग्रेजों ने आक्रमण किया था, उस युध्द में भारतीय सेना नें किया था। इस प्रकार आधुनिक युग में प्रथमराकेट का प्रक्षेपण भारत नें किया था। डॉ. कलाम लिखते हैं कि, जैसे ही मैने यह बात कही एक भारतीय नौकरशाह बोला मि. कलाम! आप गलत कहते हैं, वास्तव में तो फ्रेंच लोगों ने वह टेक्नोलॉजी टीपू सुल्तान को दी थी। डॉ. कलाम नें कहा ऐसा नही है, आप गलत कहते हैं! मैं आपको प्रमाण दूंगा। और सौभाग्य से वह प्रमाण किसी भारतीय का नही था, नही तो कहते कि तुम लोगोंने अपने मन से बना लिया है। एक ब्रिटिश वैज्ञानिक सर बर्नाड लावेल ने एक पुस्तक लिखी थी ''द ओरिजन एण्ड इंटरनेशनलइकोनॉमिक्स ऑफ स्पेस एक्सप्लोरेशन'' उस पुस्तक में वह लिखते हैं कि 'उस युध्द में जब भारतीय सेना नें राकेट का उपयोगकिया तो एक ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम कांग्रेह्वा ने राकेट का खोल लेकर अध्ययन किया और उसका नकल करके एक राकेटबनाया। उसने उस राकेट को 1805 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री विलियम पिट के सामनें प्रस्तुत किया और उन्होने इसे सेनामें प्रयुक्त करनें की अनुमति दी।' जब नैपोलियन के खिलाफ ब्रिटेन का युध्द हुआ तब ब्रिटिश सेना नें राकेट का प्रयोग किया।अगर फ्रेंचो के पास वह टेक्नोलॉजी होती तो वे भी सामने से राकेट छोड़ते, लेकिन उन्होने नही छोड़ा। जब यह पंक्तियाँ डॉ. कलामनें उस नौकरशाह को पढ़ाई तो उसको पढ़कर  भारतीय नौकरशाह बोला, बड़ा दिलचस्प मामला है। डॉ. कलाम नें कहा यह पढ़करउसे गौरव का बोध नही हुआ बल्कि उसको दिलचस्पी का मामला लगा|


यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि जिस ब्रिटिश वैज्ञानिक नें नकल कर के राकेट बनाया उसे इंलैण्ड का बच्चा-बच्चा जानता है।किन्तु जिन भारतीय वैज्ञानिकों ने भारत के लिए  पहला राकेट बनाया उन्हे कोई भारतीय नही जानता। यह पूरी तरह से प्रदर्शितकरता है कि हम क्या पढ़ रहे हैं? और हमे क्या पढ़ना चाहिए? जबतक प्रत्येक भारतीय पश्चिम की श्रेष्ठता और अपनी हीनता केबोध की प्रवृत्ति को नही त्यागता तब तक भारत विश्व के सर्वोच्च शिखर पर नही पहुँच सकता। ऐसे में हमे आवश्यकता है यहजानने की कि विज्ञान के क्षेत्र में भारत नें इस विश्व को क्या दिया। इसके बारे में बताने के लिए सर्वप्रथम भारत की प्राचीनस्थिति को स्पष्ट करना आवष्यक हो जाता है। क्यों कि प्राचीन भारत के प्रतिमानों के नकारने के कारण हम वर्तमान में पश्चिम की नकल करने पर मजबूर हैं। जबकि हमारे प्राचीन ज्ञानों का नकल एवं शोध करके पश्चिम, विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति के शिखर पर विराजमान है।

प्राचीन भारत :

जब प्राचीन भारत का नाम आता है तो कम से कम हम यह तो अवश्य ही कहते हैं कि प्राचीन काल में भारत जगद्गुरु था, तथायहाँ दूध की नदियाँ बहती थीं। तो यह निश्चित रुप से कहा जा सकता है कि जहाँ सभ्यता इतनी विकसित थी कि हम जगद्गुरु कहेजाते थे तो स्वभाविक रुप से आविष्कार भी इस भूमि पर अन्यों की अपेक्षा अधिक हुए होंगे क्योंकि जहाँ व्यक्ति बुध्दिजीवी होगावहाँ आविष्कार की संभावना अधिक होगी फिलहाल य यहाँ यह जानने की आवश्यकता है कि प्राचीन काल में कौन-कौन सेप्रमुख वैज्ञानिक हुए और उन्होने विश्व को क्या दिया।

सर्वप्रथम हम चिकित्सा का क्षेत्र लेते हैं, हमारे यहाँ एक श्लोक प्रचलित है जिसे सामान्यत: सभी लोग सुनें होंगे वह है कि'सर्वेभवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कष्चिद दु:खभाग्भवेत॥' अर्थात् सभी लोग सुखी हों, सभी लोगस्वस्थ रहें ऐसी कामना की गयी है। आज के आधुनिक पढ़े लिखे शिक्षित नौजवानों को यह जानने की आवश्यकता है जो मन मेंयह बैठाये हैं या षणयन्त्र पूर्वक यह बैठाया गया है कि विज्ञान पश्चिम की देन है और सभ्यता भारत की देन है। जबकि दोनों हीभारत की देन है। यूरोपिय यह मानते हैं कि हम (भारतीय) हर दृष्टि से उनसे श्रेष्ठ हैं और वर्तमान में भी हो सकते हैं, किन्तु यह वहप्रकट नही करते क्योंकि उन्हे यह मालूम है कि हम भारतीय कुत्सित हो चुके हैं, और यही उनकी सफलता है। एक यूरोपियप्रोफेसर मैकडोनाल का कहना है कि 'विज्ञान पर यह बहस होनी चाहिए कि भारत और यूरोप में कौन महत्वपूर्ण है। वह आगेकहता है कि यह पहला स्थान है जहाँ भारतीयों ने महान रेखागणित की खोज की जिसे पूरी दुनिया नें अपनाया और दशमलव कीखोज नें गणित व विश्व को नया आयाम दिया। उसने कहा कि यहाँ बात सिर्फ गणित की नही है, यह उनके विकसित समाज काप्रमाण है जिसे हम अनदेखा करते हैं।' 8वीं से 9वीं शताब्दी में भारत अंकगणित और बीजगणित में अरब देशों  का गुरू थाजिसका अनुसरण यूरोप नें किया।

भारतीय चिकित्सा विज्ञान को 'आयुर्वेद' नाम से जाना जाता है। और यह केवल दवाओं और थिरैपी का ही नही अपितुसम्पूर्ण जीवन पध्दति का वर्णन करता है। डॉ. कैरल जिन्होने मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार जीता है तथा वह लगभग 35 वर्षों तक रॉक फेल्टर इन्स्टीटयूट ऑफ मेडिकल रिसर्च, न्यूयार्क में कार्यरत रहै हैं उनका कहना है कि 'आधुनिक चिकित्सामानव जीवन को और खतरे में डाल रही है। और पहले की अपेक्षा अधिक संख्या में लोग मर रहे हैं। जिसका प्रमुख कारणनई-नई बिमारियाँ हैं जिनमें इन दवाओं का भी हाथ है। भारतीय चिकित्सा विज्ञान एक विकसित विज्ञान रहा है। और यह उससमय रहा है जब पृथ्वी पर किसी अन्य देश को चिकित्सा विषय की जानकारी ही नही थी। 'चरक' जो महान चिकित्सा शास्त्री थेनें कहा है '' आयुर्वेद विज्ञान है और सर्वोत्तम् जीवन जीने की स्वतंत्रता प्रदान करता है''। आधुनिक चिकित्सा वर्तमान में बहुत हीविकसित हो चुकी है, लेकिन इसका श्रेय भारत को देना चाहिए जिसनें सर्वप्रथम इस शिक्षा से विश्व को अवगत कराया और विश्वगुरु बना।यह किसी भारतीय के विचार नही हैं, इससे हम यह समझ सकते हैं कि हमें अपनी शिक्षा का ही ज्ञान नही रहा तो हमइसका प्रचार व प्रसार कैसे कर सकते हैं। ऐसा नही है कि केवल भारत व इसके आस-पास ही भारतीय चिकित्साशास्त्र काबोलबाला रहा है। यद्यपि ऐसे अनेकों प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं जिससे यह जानकारी प्राप्त होती है कि भारतीयचिकित्साशास्त्र व भारतीय चिकित्साशास्त्रियों नें पूरे एशिया यहाँ तक कि मध्य पूर्वी देशों, इजिप्ट, इज्रराइल, जर्मनी, फ्रांस, रोम, पुर्तगाल, इंलैण्ड एवं अमेरिका आदि देशों को चिकित्सा ज्ञान का पाठ पढ़ाया।

आयुर्वेद को श्रीलंका, थाइलैण्ड, मंगोलिया और तिब्बत में राष्ट्रीय चिकित्सा शास्त्र के रुप में मान्यता प्राप्त है। चरक संहिता वसुश्रुत संहिता का अरबी में अनुवाद वहाँ के लोगों नें 7वीं शताब्दी में ही कर डाला था। फरिस्ता नाम के मुस्लिम (इतिहास लेखक) लेखक नें लिखा है, ''कुछ 16 अन्य भारतीय चिकित्सकीय अन्वेषणों की जानकारी अरब को 8वीं शताब्दी में थी।'' पं. नेहरुजिन्होनें इतिहास में आर्य समस्या उत्पन्न करनें की भारी भूल की थी वही भी आयुर्वेद को नही नकार पाये और अपनी पुस्तक'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में लिखा है - '' अरब का राजा हारुन-उल-राशिद जब बीमार पड़ा तो उसनें 'मनक' नाम के एक भारतीयचिकित्सक को अपने यहाँ बुलाया। जिसे बाद में अरब के शासक नें मनक को राष्ट्रीय चिकित्सालय का प्रमुख बनाया। अरबलेखकों नें लिखा है कि मनक से समय बगदाद में ब्राह्मण छात्रों को बुलाया गया जिन्होनें अरब को चिकित्सा, गणित, ज्योतिषशास्त्र तथा दर्शन शास्त्र की शिक्षा दी। बगदाद की पहचान ही हिन्दू चिकित्सा एवं दर्शन के लिए विख्यात हुआ। और अरब भारतीय चिकित्सा, गणित तथा दर्शन में पश्चिम देशों  (युरोप) का गुरु बना। इससे साफ पता चलता है कि भारत सेअरब व अरब से यूरोप इन विद्याओं में शिक्षित हुआ। सबकी जननी यह मातृभूमि ही रही।

यूरोपीय डॉ. राइल नें लिखा है- 'हिप्पोक्रेटीज (जो पश्चिमी चिकित्सा का जनक माना जाता है) नें अपनें प्रयोगों में सभीमूल तत्वों के लिए भारतीय चिकित्सा का अनुसरण किया।डॉ. ए. एल. वॉशम नें लिखा है कि 'अरस्तु भी भारतीय चिकित्सा का कायल था।'

चरक संहिता और सुश्रुत संहिता का गहराई से अध्ययन करनें वाले विदेशी वैज्ञानिक (जैसे- वाइस, स्टैन्जलर्स, रॉयल, हेजलर्स, व्हूलर्स आदि) का मानना है कि आयुर्वेद माडर्न चिकित्सा के लिए वरदान है। कुछ भारतीय डॉक्टरों ने भी इस पर शोधपरक कार्यकिया है जिनमें प्रमुख हैं- महाराजा ऑफ गोंदाल, गणनाथ सेन, जैमिनी भूषण राय, कैप्टन श्री निवास मूर्ति, डी. एन. बनर्जी, अगास्टे, के एस. भास्कर व आर. डब्ल्यू चोपड़ा आदि। इन सभी देशी -विदेशी आधुनिक डॉक्टरों ने चिकित्सा क्षेत्र में आयुर्वेद कीमहत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि 'भविष्य का विज्ञान तभी सुरक्षित प्रतीत होगा जब हम प्राचीन भारतीय व्यवस्था को अपनायेगें।'             

विज्ञान के अन्य क्षेत्र :-             
यहाँ यह बताना आवश्यक होगा कि हमारे पास जितना भी विस्तृत ज्ञान आयुर्वेद एवं जीवन पद्धति के बारे में है उतना ही विज्ञानके अन्य क्षेत्रों में भी अन्यान्य ग्रन्थो में मिलता है। विज्ञान के इन क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय मनीषियों नें अपने अनुसंधानों द्वाराअकाटय प्रमाण प्रस्तुत किये हैं। आज जब पूरी दुनिया परमाणु के खतरे व सम्बर्धन की राजनीति कर रही है, और इसकी आड़में अमेरिका जैसे यूरोपीय देश अपना गौरव बढ़ा रहे हैं। ऐसे में यह जानना होगा कि सर्वप्रथम परमाणु वैज्ञानी कहीं और नहीबल्कि इस भारतभूमि में पैदा हुए, जिनमें प्रमुख हैं:- महर्षि कणाद, ऋषि गौतम, भृगु, अत्रि, गर्गवशिष्ट, अगत्स्य, भारद्वाज, शौनक, शुक्र, नारद, कष्यप, नंदीष, घुंडीनाथ, परशुराम, दीर्घतमस, द्रोण आदि ऐसे प्रमुख नाम हैं जिन्होनें विमान विद्या (विमानविद्या), नक्षत्र विज्ञान (खगोलशास्त्र), रसायन विज्ञान (कमेस्ट्री), जहाज निर्माण (जलयान), अस्त्र-शस्त्र विज्ञान, परमाणु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, प्राणि विज्ञान, लिपि शास्त्र इत्यादि क्षेत्रों में अनुसंधान किये और जो प्रमाण प्रस्तुत किये वह वर्तमान विज्ञानसे उच्चकोटि के थे। जो मानव समाज के उत्थान के मार्ग को प्रशस्त करनें वाले हैं न कि आज के विज्ञान की तरह, जो निरन्तरही मानव सभ्यता के पतन का बीज बो रहा है।

प्राचीन काल से वर्तमान काल तक भारत की वैज्ञानिक देन :-(अन्यान्य क्षेत्रों के माध्यम से)

अब हम यह जानने का प्रयास करेगें कि वर्तमान में जो आविष्कार मानव जीवन को सुविधायुक्त बनाये हुए हैं उनमेंप्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक भारत का क्या दृष्टिकोण रहा है, तथा इन विविध क्षेत्रों में भारतीय मनिषियों का क्यायोगदान रहा है।

सर्वप्रथम हम बात करते हैं विद्युतशास्त्र की। अगस्त ऋषि की संहिता के आधार पर कुछ विद्वानों नें उनके द्वारा लिखेगये सूत्रों की विवेचना प्रारम्भ की। उनके सूत्र में वर्णित सामग्री को इकट्ठा करके प्रयोग के माध्यम से देखा गया तो यह वर्णनइलेक्ट्रिक सेल का निकला। यही नही इसके आगे के सूत्र में लिखा है कि सौ कुंभो की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेगें तो पानीअपने रुप को बदलकर प्राणवायु (ऑक्सीजन) तथा उदानवायु (हाईड्रोजन) में परिवर्तित हो जायेगा। उदानवायु कोवायुप्रतिबन्धक यन्त्र से रोका जाय तो वह विमान विद्या में काम आता है। प्रसिध्द भारतीय वैज्ञानिक राव साहब वझे जिन्होनेभारतीय वैज्ञानिक ग्रन्थों और प्रयोगों को ढूढ़नें में जीवन लगाया उन्होने अगत्स्य संहिता एवं अन्य ग्रन्थों के आधार पर विद्युतके भिन्न-भिन्न प्रकारों का वर्णन किया। अगत्स्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरणमिलता है।

जब हम 'यंत्र विज्ञान' अर्थात् मैकिनिक्स पढ़ते हैं तो सर्वप्रथम न्यूटन के तीनो नियमों को पढ़ाया जाता है। यदि हममहर्षि कणाद वैशेषिक दर्शन में कर्म शब्द को देखें तो Motion  निकलता है। उन्होने इसके पाँच प्रकार बताये हैं - उत्क्षेपण(Opword Motion), अवक्षेपण (Downword Motion), आकुंचन (Motion due to tensile stress), प्रसारण (Sharing Motion)  वगमन  (Genaral type of Motion)। डॉ. एन. डी. डोगरे अपनी पुस्तक ‘The Physics’  में महर्षि कणाद व न्यूटन के नियम कीतुलना करते हुए कहते हैं कि कणाद के सूत्र को तीन भागों में बाँटे तो न्यूटन के गति सम्बन्धी नियम से समानता होती है।

'धातु विज्ञान' यह ऐसा विज्ञान है जो प्राचीन भारत में ही इतना विकसित था कि आज भी उसकी उपादेयता उतनी ही है।रामायण, महाभारत, पुराणों, श्रुति ग्रन्थों में सोना, लोहा, टिन, चाँदी, सीसा, ताँबा, काँसा आदि का उल्लेख आता है। इतना ही नहीचरक, सुश्रुत, नागार्जुन नें स्वर्ण, रजत, ताम्र, लौह, अभ्रक, पारा आदि से औषधियाँ बनाने का आविष्कार किया। यूरोप के लोग1735 तक यह मानते थे कि जस्ता एक तत्व के रुप में अलग से प्राप्त नही किया जा सकता। यूरोप में सर्वप्रथम विलियमचैंपियन नें ब्रिस्टल विधि से जस्ता प्राप्त करनें के सूत्र का पेटेन्ट करवाया। और उसने यह नकल भारत से की क्योंकि 13वीं सदीके ग्रन्थ रसरत्नसमुच्चय में जस्ता बनाने की जो विधि दी है, ब्रिस्टल विधि उसी प्रकार की है। 18वीं सदी में यूरोपीय धातुविज्ञानियों ने भारतीय इस्पात बनाने का प्रयत्न किया, परन्तु असफल रहे। माइकल फैराडे ने भी प्रयत्न किया पर वह भी असफलरहा। कुछ नें बनाया लेकिन उसमें गुणवत्ता नही थी। सितम्बर 1795 को डॉ. बेंजामिन हायन नें जो रिपोर्ट ईस्ट इण्डिया कम्पनीको भेजी उसमें वह उल्लेख करता है कि 'रामनाथ पेठ एक सुन्दर गांव बसा है यहाँ आस-पास खदानें है तथा 40 भट्ठियाँ हैं। इनभट्ठियों में इस्पात निर्माण के बाद कीमत 2रु. मन पड़ती है। अत: कम्पनी को इस दिशा में सोचना चाहिए।' नई दिल्ली में विष्णुस्तम्भ (कुतुबमीनार) के पास स्थित लौह स्तम्भ विष्व धातु विज्ञानियों  के लिए आश्चर्य का विषय रहा है, ''क्योंकि लगभग1600 से अधिक वर्षों से खुले आसमान के नीचे खड़ा है फिर भी उसमें आज तक जंग नही लगा।

विज्ञान की अन्य विधाओं में वायुयान o जलयान भी विश्व को तीव्रगामी बनानें में सहायक रहे हैं। वायुयान का विस्तृतवर्णन हमारे प्राचीन ग्रन्थों में भरा पड़ा है उदाहरणत: विद्या वाचस्पति पं0 मधुसूदन सरस्वती के 'इन्द्रविजय' नामक ग्रन्थ मेंऋग्वेद के सूत्रों का वर्णन है। जिसमें वायुयान सम्बन्धी सभी जानकारियाँ मिलती हैं। रामायण में पुष्पक विमान, महाभारत में, भागवत में, महर्षि भारद्वाज के 'यंत्र सर्वस्व' में। इन सभी शास्त्रों में विमान के सन्दर्भ में इतनी उच्च तकनिकी का वर्णन है कियदि इसको हल कर लिया जाय तो हमारे ग्रन्थों में वर्णित ये सभी प्रमाण वर्तमान में सिध्द हो जायेगें। आपको यह जानकरआश्चर्य होगा कि विश्व की सबसे बड़ी अन्तरिक्ष शोध संस्था 'नासा' नें भी वहीं कार्यरत एक भारतीय के माध्यम से भारत से महर्षिभारद्वाज के 'विमानशास्त्र' को शोध के लिए मँगाया था। इसी प्रकार पानी के जहाजों का इतिहास व वर्तमान भारत की ही देन है।यह सर्वत्र प्रचार है कि वास्कोडिगामा नें भारत आने का सामुद्रिक मार्ग खोजा, किन्तु स्यवं वास्कोडिगामा अपनी डायरी मेंलिखता है कि, ''जब मेरा जहाज अफ्रीका के जंजीबार के निकट आया तो अपने से तीन गुना बड़ा जहाज मैनें वहाँ देखा। तब एकअफ्रीकन दूभाषिये को लेकर जहाज के मालिक से मिलने गया। जहाज का मालिक 'स्कन्द' नाम का गुजराती व्यापारी था जोभारतवर्ष से चीड़ व सागवन की लकड़ी तथा मसाले लेकर वहाँ गया था। वास्कोडिगामा नें उससे भारत जाने की इच्छा जाहिर कीतो भारतीय व्यापारी ने कहा मैं कल जा रहा हँ, मेरे पीछे-पीछे आ जाओ।'' इस प्रकार व्यापारी का पीछा करते हुए वह भारतआया। आप स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत का एक सामान्य व्यापारी वास्कोडिगामा से अधिक जानकार था।


आविष्कारों की दृष्टि से और आगे बढ़ते हैं तो गणित शास्त्र की तरफ ध्यान आकृष्ठ होता है। इस क्षेत्र में भारत की देन हैकि विश्व आज आर्थिक दृष्टि से इतना विस्तृत हो सका है। भारत इस शास्त्र का जन्मदाता रहा है। शून्य और दशमलव की खोजहो या अंकगणित, बीजगणित तथा रेखागणित की, पूरा विष्व इस क्षेत्र में भारत का अनुयायी रहा है। इसके विस्तार में न जाकरएक प्रमाण द्वारा इसकी महत्ता को समझ सकते हैं। यूरोप की सबसे पुरानी गणित की पुस्तक 'कोडेक्स विजिलेंस' है जो स्पेन कीराजधानी मेड्रिड के संग्रहालय में रखी है। इसमें लिखा है ''गणना के चिन्हो से हमे यह अनुभव होता है कि प्राचीन हिन्दूओं कीबुध्दि बड़ी पैनी थीअन्य देश गणना व ज्यामितीय तथा अन्य विज्ञानों मे उनसे बहुत पीछे थे। यह उनके नौ अंको से प्रमाणितहो जाता है। जिसकी सहायता से कोई भी संख्या लिखी जा सकती है।'' भारत में गणित परम्परा कि जो वाहक रहे उनमें प्रमुख हैं, आपस्तम्ब, बौधायन, कात्यायन, तथा बाद में ब्रह्मगुप्त, भाष्काराचार्य, आर्यभट्ट, श्रीधर, रामानुजाचार्य आदि। गणित के तीनोंक्षेत्र जिसके बिना विश्व कि किसी आविष्कार को सम्भव नही माना जा सकता, भारत की ही अनुपन देन है।

कालगणना अर्थात् समय का ज्ञान जो पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर इसके विनाष तक के निर्धारित अवधि तक का वर्णनकरता है। सत्यता व वैज्ञानिक दृष्टि से भारतीय कालगणना अधिक तर्कयुक्त व प्रमाणिक मानी जाती है। खगोल विद्या वेद का नेत्रकहा जाता है। अत: प्राचीन काल से ही खगोल वेदांग का हिस्सा रहा है। ऋग्वेद, शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रन्थों मे नक्षत्र, चान्द्रमास, सौरमास, मलमास (पुरुषोत्तम मास), ऋतु परिवर्तन, उत्तरायण, दक्षिणायन, आकाषचक्र, सूर्य की महत्ता आदि के विस्तृत उल्लेखमिलते हैं। यजुर्वेद के 18वें अध्याय में यह बताया गया है कि चन्द्रमा सूर्य के किरणों के कारण प्रकाशमान है। यंत्रो का उपयोगकर खगोल का निरीक्षण करने की पध्दति प्राचीन भारत में रही है। आर्यभट्ट के समय आज से लगभग 1500 वर्ष पूर्व पाटलीपुत्रमें वेधशाला थी, जिसका प्रयोग करके आर्यभट्ट नें कई निष्कर्ष निकाले। हम जिस गुरुत्वाकर्षण के खोज की बात करते हुएन्यूटन को इसका श्रेय देते हैं उससे सैकड़ो वर्ष पूर्व (लगभग 550 वर्ष) भाष्कराचार्य नें यह बता दिया था। भाष्कराचार्य ने हीसर्वप्रथम बताया कि पृथ्वी गोल है जिसे यूरोपीय चपटा समझते थे।

रसायन विज्ञान हो या प्राणि विज्ञान या  वनस्पिति विज्ञान इन सभी क्षेत्रों में भारतीय यूरोप की अपेक्षा अग्रणी रहे हैं। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में प्रमुख वैज्ञानिक नागार्जुन, वाग्भट्ट, गोविन्दाचार्य, यशोधर, रामचन्द्र, सोमदेव आदि रहे हैं। जिन्होनें खनिजों, पौधों, कृषिधान्य आदि के द्वारा विविध वस्तुओं का उत्पादन, विभिन्न धातुओं का निर्माण व इनसे औषधियाँ बनाने का कार्य किया। वनस्पति विज्ञान में पौधों का वर्गीकरण अथर्ववेद में विस्तृत रुप में मिलता है। चरक संहिता में, सुश्रुत संहिता में, महर्षि पराशर व वाराहमिहिर के वृहत्ता संहिता में, वर्तमान (आधुनिक युग में) जगदीष चन्द्र वसु के प्रयोगो में कहाँ-कहाँ नही इन विधाओं का वर्णन मिलता है! जरुरत है तो इन्हे जानकर शोध करने की। इसी प्रकार प्राणि विज्ञान में प्राचीन से लेकर वर्तमान तक भारतीय मनिषियों ने अपना लोहा मनवाया है।

जहाँ तक आधुनिक भारतीय विज्ञान के परिदृष्य की बात है तो इस भूमि में जन्में मनिषियों नें पूरे विश्व को अनवरत अपने ज्ञान से सींचना जारी रखा है। देश में ही नही विदेशों मे भी भारतीय वैज्ञानिक फैले हुए हैं। इनमें से कुछ ऐसे नाम लेना आवश्यक है जिन्होने भारतवर्ष के मस्तक को ऊँचा रखा है। उनमें प्रमुख हैं :- राना तलवार जो Stanchart  के CEO हैं, अजय कुमार (जो नासा के एयरोडायनामिक्स के प्रधान हैं), सी.के. प्रह्लाद (इनको मैनेजमैन्ट गुरु माना जाता है)। वर्तमान स्पेश व मिसाइल विज्ञान में जो प्रमुख हैं वह विक्रम साराभाई (जिन्हे भारतीय स्पेस टेक्नालॉजी का पिता कहा जाता है), डॉ. सतीष धवन, डॉ. अब्दुल कलाम (जिन्हे मिसाइल मैन की उपाधि मिली हुई है), डॉ. माधवन नॉयर (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के अध्यक्ष), डॉ. कस्तूरी रंगन, डॉ. होमी जहांगीर भाभा (आधुनिक भारतीय आणविक विज्ञान के प्रणेता), डॉ. पी. के. अयंगर, डॉ. चितंबरम, डॉ. अनिक काकोदकर, डॉ. राजारमण ये आधुनिक विज्ञान के परामाणु विज्ञानी हैं। ऐसे भारतीय मनिषियों का नाम भी बताना आवश्यक है जो विभिन्न देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं उनमें प्रमुख हैं :- याल्लप्रागदा सुब्बाराव (Yallaprangada Subbarao) जिन्होने 1948 में चिकित्सा के क्षेत्र में योगदान दिया, डॉ. रंगास्वामी श्रीनिवासन (इन्होने लेसिक ऑई सर्जरी का आविष्कार किया जिन्हे अमेरिका नें US National inventers hall of fame का खिताब दिया)डॉ. प्रवीण चौधरी इन्होने कम्प्यूटर के क्षेत्र में रिराइटेबल काम्पेक्ट डिस्क(CD-RW) का आविष्कार किया, डॉ. शिव सुब्रमण्यम (ये अमेरिका के स्पेस प्रोजेक्ट के प्रमुख रहे) जिनको अमेरिका नें उच्चतम् राष्ट्रीय अवार्ड से नवाजा था, कल्पना चावला (दिवंगत अंतरिक्ष यात्री), सुनीता विलियम्स (इन्होने सबसे अधिक अंतरिक्ष में चलने का रिकार्ड बनाया है, यह रिकार्ड है 22 घंटे और 27 मिनट) इनका मूल नाम सुनीता पाण्डया है, डॉ. सी.वी.रमन (इन्हे रमन इफेक्ट के लिए फिजिक्स का नोवेल पुरस्कार दिया गया), डॉ. हरगोविन्द खुराना (इन्हे आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है, इन्हे 1968 में नोवेल पुरस्कार मिला), अर्मत्य सेन (इन्हे अर्थशास्त्र के क्षेत्र में 1998 में नोवेल पुरस्कार मिला)। कम्प्यूटर के क्षेत्र में डॉ. विजय भटनागर (इन्होनें 'परम' 10000 का आविष्कार किया, जिसे मल्टीमीडिया डिजिटल लाइब्रेरी के नाम से जाना जाता है), डॉ. नरेन्द्र करमाकर (ये कम्प्यूटर को वर्तमान की अपेक्षा 50 से 100 गुना तेज बनाने की खोज कर रहे हैं जिसके लिए टाटा नें फण्ड की भी व्यवस्था की है)।

इन आधुनिक वैज्ञानिकों के बाद इनके आविष्कारों के फल को भी जानना आवश्यक प्रतीत होता है जो क्रमश: इस प्रकार हैं :- हमारे मिसाइल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी, त्रिशूल, नाग, ब्रह्मोस, पृथ्वी II, अग्नि II । ये सभी मिसाइल हैं जो दुश्मन के सभी आक्रमणों को नेस्तानाबूत करने मे सक्षम हैं। हमारे सैटेलाइट- आर्यभट्ट, रोहिणी, भाष्कर, ASLV (इसकी उड़ान क्षमता 4000 कि.मी. प्रति घंटे है।), PSLV (यह पोलर सैटेलाइट है इसकी रेन्ज 8000 कि.मी. प्रति घंटा है तथा यह 1200 किलोग्राम भार ले जाने में सक्षम है।) GSLV     (यह भी अत्याधुनिक लांचर है) आदि प्रमुख हैं जो तकनिकी दृष्टि से अत्यन्त सफल हैं। हमारा परमाणु परीक्षण, जो प्रथम बार 1974 में किया गया था, तथा 1998 में जब दूसरी बार इसका 5 बार परीक्षण किया गया तो इतनी उच्च तकनिकी का प्रयोग किया गया कि इतने बड़े परीक्षण को अमेरिका जैसे देश ट्रेस नही कर पाये। इस प्रकार भारत उन 9 शक्तिशाली देशों  में शामिल हो गया जिनके पास परमाणु बनाने की क्षमता है।

इतने उच्चतम् श्रेणि का विज्ञान भारत कि गौरव का बखान करते हैं। आज आवश्यकता इस बात की नही है कि हम केवल इसका गान करें अपितु आवश्यकता इस बात की अधिक है कि हम इन सभी विषयों पर ज्यादा से ज्यादा शोध करें तथा प्राचीन से लेकर वर्तमान तक के शुध्द भारतीय ज्ञान का अध्ययन करें और इसे समस्त विश्व के सामने प्रमाण रुप में उदघाटित  करें। ताकि हम अपनें अतीत के गौरव को वर्तमान में ढ़ालकर पूरे ब्रह्माण्ड के भविष्य को सुरक्षित व संवर्धित कर सकें।